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2020 और अमावस की रात

नमस्कार   आज पहला दिन है इस साल के अंतिम माह का । ये साल 2020 सबको कुछ ना कुछ सीखा ही गया है । बहुतों के लिए ये साल अमावस की काली रात की तरह भयावह रहा । ये अमावस की रात प्रेमचंद की कहानियों में भयानक होती थी अपने घुप्प अंधेरे की कालिमा के वजह से । आजकल बिना पंचांग के तो पता भी नहीं चलता अमावस का परंतु फिर भी साहित्य में इस अमावस की काली रात की भयावहता किसी के भी डर को बड़ी शालीनता से प्रभावशाली तरीके से उकेरती है । अमावस की भयावहता और बढ़ जाती है अगर पवन देव थोड़े ज्यादा व्यग्रता से गतिमान हो जाते हैं । और जब देव की व्यग्रता आस पास के पेड़ पौधे अपने पत्तों की सरसराहट से प्रस्तुत करने लग जाते हैं तो यकीन मानिए फिर उनके पुत्र का नाम ही सहारा दे पाता है भयभीत मन को । परंतु ऐसा केवल किसी अपरिचित स्थान पे ही होता है । अपने घरौंदे के आस पास तो ये सरसराहट संगीत सा सुकून देता है और ये काली रात्रि तो टिमटिमाते तारों की भव्य आकाशगंगाओं की मनोहरता में खो जाने की प्रेरणा बन जाती है ।  खैर ये साल भी रहा अमावस की काली रात की तरह । प्रारम्भ में वस्तुस्थिति से अपरिचित होने की वजह से भयभीत ...

मेरा अरेराज

पुरे देश में कोरोना अपनी टांगें पसारने को तत्पर है और उससे बचने के लिए सम्पूर्ण भारत हीं सम्पूर्ण लॉकडाउन के बंधन में सिमटा हुआ है अपने -अपने घरों में। कई सारे सुरक्षा के उपाय और कई सारे निर्देश समाचार, प्रेस विज्ञप्ति और सोशल साइट पे लगातार दिए जा रहे हैं और उनका पालन करने की अपील भी बार बार की जा रही है। आशा है सभी इन निर्देशों का पालन करके कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ने में सहयोग कर रहे होंगे।   इस लॉकडाउन में समय काटना मुश्किल हो रहा था। ना जाने कैसे लोग खाली समय में फिल्में , सीरियल्स वगैरह देख लेते हैं ? हमसे तो तब तक चलचित्र का कोई भी फॉर्मेट देखा नहीं जाता जब तक कि उससे समय बर्बाद होने की स्पष्ट अनुभूति ना हो। और शायद यही कारण भी है कि हमने जितनी फिल्में परीक्षा के अवधि में देखी हैं एक साथ उतनी कालांतर में कभी देखी नहीं गई। शायद समय बर्बाद होने की अनुभूति जितनी ही तीव्र होती  है फिल्म देखने का आनंद उतना ही बढ़ जाता है। 😅                 ...