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Showing posts from January, 2019

कल्पना की कल्पना (द्वितीय खंड)

राफेल और सवर्ण आरक्षण के शोर के मध्य भी कल्पना की कल्पना का प्रथम खंड इतना पढ़ा और सराहा जायेगा, ये कल्पना कभी मन में आई ही नहीं पाई थी। तो जिसकी कल्पना ही न हो मन में और वो घटित हो जाये फिर  शब्द जुड़ हीं नहीं पाते वाक्य-निर्माण के हेतु। ऊपर से बहुत सारे मित्रों के प्रशंसा के शब्दों ने मन में उनके अपेक्षाओं पे खरा ना उतर पाने का भय भी अंकुरित कर दिया है। अब तो असमंजस है कि मित्रों को उनके प्रशंसात्मक शब्दों के लिए धन्यवाद दूँ या दोषारोपण करूँ उस भय के लिए (😅😅😈)। खैर इन उदार वचनों  के मध्य एक मित्र ने कहा, "कुछ कहानियाँ हम किसी को सुना नहीं सकते और कथाकार ऐसी कहानियों को काल्पनिक कथा के आवरण में प्रस्तुत कर देते हैं और साकेत शायद तू भी इस कहानी के सहारे उन सच्ची कहानियों को  दुबारा जीने की कोशिश कर रहा है।" इतनी गंभीर बात पे क्या ही कहता मैं ? बस इतना कह पाया कि अगले भाग को पढ़ फिर उसके बाद अपने विचार देना। तो आते हैं असली कहानी पे।                   गोरखनाथ मंदिर में तालाब के किनारे सभी दोस्तों की कहानियां मुख्यतः ३ ...

कल्पना की कल्पना (प्रथम खंड)

कल बहुत सालों बाद एक गोरखपुर के मित्र से मुलाकात हुई। हमने साथ-साथ सरस्वती शिशु मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, गोरखपुर में 11th और 12th की शिक्षा प्राप्त की थी। कुछ सामान्य अभिवादन और हाल चाल के बाद भाईसाहब ने पूछा कि साकेत बता भाभी  कैसी है ? मैंने सपाट शब्दों में रटा रटाया वाक्य दुहराया  कि भाई कोई नहीं है अभी जिंदगी में मेरी और जब होगी पक्का सबसे पहले तुझे ही बताऊंगा। और क्या ही कहता मैं? वैसे बहुत दिनों बाद किसी ने ऐसा प्रश्न पूछा था मुझसे। इंजीनिरिंग के समय अक्सर मित्रगण पूछ लिया करते थे मजाक में इस आशा में की कोई तो जीवनसंगिनी (यानि कि उनके लिए भाभी  ) साकेत ने ढूंढ ही ली होगी। खैर अफ़सोस उनके बहुत सारे टिप्स और एवरेस्ट के जैसे तानों के बाद भी मेरा कुछ नहीं हो सका। अब तो मेरे इंजीनियरिंग वाले दोस्त भी ' भाभी कैसी है ' से ऊपर उठ कर सीधा ' शादी कब कर रहा है' पूछते हैं। ऊपर से एक दो मिर्ची और मल जाते हैं कान पे कि कब तक पढता रहेगा,बुड्ढा हो रहा है। खैर वापस आते हैं गोरखपुर वाले मित्र की कहानी पे। भाईसाहब ने कहा कि अरे कैसी बातें कर रहा है, थी तो तेरी एक स्कूल म...