कल्पना की कल्पना (द्वितीय खंड)
राफेल और सवर्ण आरक्षण के शोर के मध्य भी कल्पना की कल्पना का प्रथम खंड इतना पढ़ा और सराहा जायेगा, ये कल्पना कभी मन में आई ही नहीं पाई थी। तो जिसकी कल्पना ही न हो मन में और वो घटित हो जाये फिर शब्द जुड़ हीं नहीं पाते वाक्य-निर्माण के हेतु। ऊपर से बहुत सारे मित्रों के प्रशंसा के शब्दों ने मन में उनके अपेक्षाओं पे खरा ना उतर पाने का भय भी अंकुरित कर दिया है। अब तो असमंजस है कि मित्रों को उनके प्रशंसात्मक शब्दों के लिए धन्यवाद दूँ या दोषारोपण करूँ उस भय के लिए (😅😅😈)। खैर इन उदार वचनों के मध्य एक मित्र ने कहा, "कुछ कहानियाँ हम किसी को सुना नहीं सकते और कथाकार ऐसी कहानियों को काल्पनिक कथा के आवरण में प्रस्तुत कर देते हैं और साकेत शायद तू भी इस कहानी के सहारे उन सच्ची कहानियों को दुबारा जीने की कोशिश कर रहा है।" इतनी गंभीर बात पे क्या ही कहता मैं ? बस इतना कह पाया कि अगले भाग को पढ़ फिर उसके बाद अपने विचार देना। तो आते हैं असली कहानी पे। गोरखनाथ मंदिर में तालाब के किनारे सभी दोस्तों की कहानियां मुख्यतः ३ ...