Posts

Showing posts from June, 2019

कल्पना की कल्पना (तृतीय खण्ड)

 पिछले पटकथा में कल्पना के लिए मेरे ह्रदय में प्रेम पुष्प अंकुरित होने की कथा का विवरण था। अब बारी थी मित्रों को ये बताने कि कैसे हमारे मध्य  प्रेम की बेलें पल्लवित हुईं और लिपटतीं गईं हम दोनों से हीं। वो कहते हैं ना प्रेम आदमी को दीवाना सा बना देता है और उसकी हरकतें सामान्य जिंदगी में पागलपन की सीमा को छूने के लिए विकल रहती हैं। तो मैंने भी जो दूसरी कहानी सुनाई वो कुछ ऐसा ही थी जिसे उस कालखंड में पागलपन ही करार दिया जाता। पागलपन से मेरा मतलब यहाँ ये है कि ऐसी हरकते करना जो दोस्ती से कुछ ज्यादा गरिष्ठ और प्रगाढ़ प्रतीत हो सभी को 😅। तो आता हूँ कहानी पे।          "बात तब की है जब हम दोनों 7 वीं कक्षा में थे। हिंदी की कक्षा चल रही थी और उस दिन हमें हमारे प्रधानाचार्य जी हीं पढ़ा रहे थे। " इतने में मेरे एक मित्र ने टोका कि हिंदी की वेला पढ़ने के लिए होती थी तुम्हारे यहाँ या ये इश्क़ लड़ाने के लिए ? पिछली कहानी भी हिंदी की ही घंटी में हुई थी। फिर मैंने उसे हल्की झिड़की देते हुए बताया कि केवल हिंदी की वेला ही ऐसी घंटी होती थी जब हम छात्रगण भी ...